अन्नपुर्णा देवी की प्रार्थना
Annpurna Devi Ki Prarthna
सिद्ध सदन सुन्दर बदन, गणनायक महाराज
दास आपका हूँ सदा कीजै जन के काज ||
जय शिव शंकर गंगाधर, जय जय उमा भवानी
सिया राम कीजै कृपा हरी राधा कल्याणी ||
जय सरस्वती जय लक्ष्मी, जय जय गुरु दयाल
देव विप्र और साधू जय भारत देश विशाल ||
चरण कमल गुरुजनों के, नमन करूँ मई शीश
मो घर सुख संपत्ति भरो , दे कर शुभ आशीष ||
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दोहा
हाजिर है सब जगह पर, प्रेम रूप अवतार
करें न देरी एक पल, हो यदि सत्य विचार ||
प्रेमी के बस में बंधे, मांगे सोई देत
बात न टाले भक्त की , परखे सच्चा हेत ||
श्रृद्धा वाले को ज्ञान मिले , तत्पर इन्द्रीवश वाला हो
पावे जो ज्ञान शीघ्र ही सब सुख शांति स्नेह निराला हो ||
वन में दावानल लगी, चन्दन वृक्ष जरात
वृक्ष कहे हंसा सुनो , क्यों न पंख खोल उड़ जात ||
प्रारब्ध पहले रखा पीछे रचा शरीर
तुलसी माया मोह फंस, प्राणी फिरत अधीर ||
तुलसी मीठे वचन से , सुख उपजत चहुँ ओर
वशीकरण यह मन्त्र है, तज दे वचन कठोर ||
मान मोह आसक्ति तजि, बनो अद्ध्यात्म अकार
द्वंद मूल सुख दुःख रहित पावन अवयव धाम ||
तामे तीन नरक के द्वार हैं, काम क्रोध अरु मद लोभ
उन्हें त्याग किन्हें मिळत, आत्म सुख बिन क्षोभ ||
सब धर्मों को त्याग कर माँ शरण गति धार
सब पाँपों से मै तेरा करूँ शीघ्र उद्धार ||
यह गीता का ज्ञान है, सब शास्त्रों का सार
भक्ति सहित जो नर पढ़ें लहे आत्म उद्धार ||
गीता के सम ज्ञान नहीं, मन्त्र न प्रेम रे आन
शरणागति सम सुख नहीं, देव न कृष्ण देव ||
अमृत पी संतोष का, हरी से ध्यान लगायें
सत्य राख संकल्प मन विजय मिलें जहा जाय ||
मन चाही सब कामना, आप ही पूरण होय
निश्चय रखो भगवान् पर, जल में दे दुःख खोय ||