Chaturmasya Vrat ki Vidhi | चातुर्मास्य व्रत की विधि 

चातुर्मास्य व्रत की विधि 

कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान्! विष्णु भगवान का शयन व्रत किस प्रकार किया जाता है। सो सब कृपापूर्वक कहिये श्रीकृष्ण बोले कि राजन् अब मैं आपको विष्णु के शयन का व्रत कहता हूँ। सुनिये। जब सूर्यनारायण कर्क राशि में स्थित हों, तब विष्णु भगवान् को शयन कराना चाहिये और सूर्यनारायण के तुला राशि में आने पर भगवान् को उठाना चाहिये।

 

पुरुषोत्तम (अधिक) माह के आने पर भी विधि इसी प्रकार रहती है। इस विधि से अन्य देवताओं को शयन न कराना चाहिये। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करना चाहिये। उस दिन विष्णु भगवान् की प्रतिमा बनानी चाहिये और चातुर्मास्य व्रत नियम से करना चाहिये। सबसे प्रथम उस प्रतिमा को स्नान कराना चाहिये। फिर सफेद वस्त्रों को धारण कराकर तकियादार शैया पर शयन कराना चाहिये। उनको धूप, दीप नैवेद्यादि से पूजन कराना चाहिये। भगवान् का पूजन शास्त्र ज्ञाता ब्राह्मणों के द्वारा कराना चाहिये, तत्पश्चात भगवान् विष्णु की इस प्रकार स्तुति करनी चाहिये। हे भगवान् ! मैंने आपको शयन कराया है। आपके शयन से सम्पूर्ण विश्व सो जाता है। इस तरह विष्णु भगवान् के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिये कि हे भगवान्! आप जब चार मास तक शयन करें, तब तक मेरे इस चातुर्मास्य व्रत को निर्विघ्न रखें। इस प्रकार विष्णु भगवान् की स्तुति करके शुद्ध भाव से मनुष्यों को दाँतुन आदि के नियम को ग्रहण करना चाहिये।

 

विष्णु भगवान् के व्रत को शरू करने के पाँच काल वर्णन किये हैं। देवशयनी एकादशी से लेकर देवोत्थानी एकादशी तक चातुर्मास्य व्रत को करना चाहिये। द्वादशी, पूर्णमाशी, अष्टमी या संक्रान्ति को व्रत प्रारम्भ करना चाहिये और कार्तिक मास के शक्लपक्ष का द्वादशी को समाप्त कर देना चाहिये। इसके व्रत 1 से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनष्य इस व्रता को प्रतिवर्ष करते हैं, वह सूर्य के समान देदीप्यमान विमान पर बैठकर विष्णुलोक को जाते है। राजन्! अब आप इसमें दान का पृथक-पृथक फल सुनें-जो मनुष्य देव मन्दिरों में रंगीन बेल बूटे बनाता है, उसे सात जन्म तक ब्राह्मण की योनि मिलती है। जो मनुष्य चातुर्मास्य के दिनों में विष्णु भगवान् को दही, दूध, घी, शहद और मिश्री के द्वारा स्नान कराता है, वह वैभवशाली होकर सुख भोगता है। जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक भूमि, स्वर्ण दक्षिणी आदि ब्राह्मणों को देता है, वह स्वर्ग में जाकर इन्द्र के समान सुख भोगता है। जो विष्णु भगवान् की स्वर्ण प्रतिमा बनाकर धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से भगवान् की पूजा करता है। वह इन्द्रलोक में जाकर अक्षय सुख भोगता है।

 

जो मनुष्य चातुर्मास्य के अन्दर नित्य प्रति तुलसीजी भगवान् को अर्पित करता है, वह स्वर्ण के विमान पर बैठकर विष्णुलोक को जाता है। जो मनुष्य विष्णु भगवान् की धूप-दीप से पूजा करते हैं, उनको अनन्त धन मिलता है। जो मनुष्य इस एकादशी से कार्तिक के महीने तक विष्णु की पूजा करते हैं, उनको विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। इस चातुर्मास्य व्रत में जो मनुष्य संध्या के समय देवताओं तथा ब्राह्मणों को दीपदान करते हैं तथा ब्राह्मणों को सोने के पान में वस्त्र देते हैं, वह विष्णुलोक को जाते हैं। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक भगवान् के चरणामृत लेते हैं। वे इस संसार के आवागमन के चक्र से छट जाते हैं। जो विष्णु मन्दिर में नित्य प्रति 108 बार गायत्री मंत्र का जप करते हैं वे पापों में लिप्त नहीं होते। जो मनुष्य पुराण तथा धर्मशास्त्र को सनते हैं और वेदपाठी ब्राह्मण को वस्त्रों का दान करते हैं वे दानी, धनी, ज्ञानी और कीर्तिमान होते हैं।

 

जो मनुष्य भगवान् या शिवजी का स्मरण करते हैं और अन्त में उनकी प्रतिमा दान करते हैं, वह पापों से रहित होकर गुणवान बनते हैं। जो मनुष्य सूर्यनारायण को अर्घ्य देते हैं और समाप्ति में गौ दान करते हैं, उनको पूरी आयु स्वस्थ देह प्राप्त होती है तथा कीर्ति, धन और बल पाते हैं। चातुर्मास्य में जो मनुष्य गायत्री मंत्र द्वारा तिल से होम करते हैं और चातुर्मास्य समाप्त हो जान पर तिल का दान करते है, उनके समस्त पाप नष्टहा। जाते हैं और निरोग शरीर मिलता है तथा सुपात सन्तान होती है। जो मनुष्य चातर्मास्य व्रत में अन्न से होम करते हैं और समाप्त हो जाने पर घी, घड़ा और वस्त्रों का दान करते हैं, वे ऐश्वर्यशाली होते हैं । जो मनुष्य तुलसीजी को धारण करते हैं तथा अन्त में विष्णु भगवान् के निमित्त ब्राह्मणों को दान करते हैं, वह विष्णुलोक को जाते हैं। जो मनुष्य चातुर्मास व्रत में भगवान के शयन के उपरान्त उनके मस्तक पर नित्य-प्रति दूध चढ़ाते हैं और अन्त में स्वर्ण की दूर्वादान करते हैं तथा दान देते समय जो इस प्रकार की स्तुति करते हैं कि हे दर्वे! जिस भाँति इस पृथ्वी पर शाखाओं सहित फैली हुई हो उसी प्रकार मुझे भी अजर अमर सन्तान दो, ऐसा करने वाले मनुष्य के सब पाप छुट जाते हैं और अन्त में स्वर्ग को जाते हैं।

 

जो शिवजी या विष्णु भगवान् के देवालय में गान करते हैं, उन्हें रात्रि जागरण का फल मिलता है। जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत करते हैं, उनको उत्तम ध्वनि वाला घण्टा दान करना चाहिये। इस प्रकार स्तुति करनी चाहिये हे भगवान् ! हे जगत्पति! आप पापों का नाश करने वाले हैं। आप मेरे योग्य कार्यों को न करने योग्य कार्यों को करने से जो पाप उत्पन्न हुए हैं, उनको नष्ट कीजिये। चातुर्मास्य व्रत के अन्दर नित्य-प्रति ब्राह्मणों का चरणामृत पान करते हैं वे समस्त पापों तथा दुःखों से छूट जाते हैं और आयवान, लक्ष्मीवान होते हैं। चातुर्मास्य व्रत के समाप्त हो जाने के बाद ही गौ-दान करना चाहिये। यदि गौ-दान न कर सको तो वस्त्र दान अवश्य करना चाहिये। जो ब्राह्मणों को नित्यप्रति नमस्कार करते हैं, उनका जीवन सफल हो जाता है और समस्त पापों से छट जाते हैं।

 

चातुर्मास्य व्रत की समाप्ति में जो ब्राह्मणों को भोजन कराता है उसकी आय तथा धन में वृद्धि होती है। जो अलंकार सहित बछड़े वाली कपिला गाय वेदपाठी ब्राह्मणों को दान करते हैं, वे चक्रवर्ती आयुवान, पत्रवान राजा होते हैं और स्वर्गलोक में प्रलय के अन्त तक इन्द्र के समान | राज्य करते हैं। जो मनष्य सर्य भगवान तथा। गणेशजी को नित्य नमस्कार करते हैं, उनका आयु तथा लक्ष्मी बढ़ती है और यदि गणेशजा प्रसन्न हो जायें तो मनवाँछित फल पाते ह गणेशजी और सूर्य की प्रतिमा ब्राह्मण को दन सब कार्यों की सिद्धि होती है। जो मनुष्य दोनों ऋतुओं में महादेवजी की प्रसन्नता के लिये तिल और वस्त्रों के साथ ताँबे का पात्र दान करते हैं, उनके यहाँ स्वस्थ सुन्दर शिवभक्त सन्तान होती है। चातुर्मास्य व्रत की समाप्ति पर चाँदी पात्र या ताँबा-पात्र गुड़ और तिल के साथ दान करना चाहिये। जो मनुष्य विष्णु भगवान् के शयन करने के उपरान्त यथाशक्ति वस्त्र और तिल के साथ स्वर्णदान करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते है और इस लोक में भोग तथा परलोक में मोक्ष प्राप्त होते हैं। चातुर्मास्य व्रत के समाप्त होने पर शय्यादान करते हैं, उनको अक्षय सुख मिलता है और कुबेर के समान धनवान होते हैं।

 

वर्षा ऋतु में जो गोपीचंदन देते हैं, उन पर भगवान् प्रसन्न होते हैं। व्रत के समाप्त हो जाने पर | इस प्रकार उद्यापन करना चाहिये-चार छटाँक (250 ग्राम ) व आठ छटाँक (500 ग्राम ) वाले ताँबे के आठ पात्र या अड़तालीस छटाँक (ढाई किलो ) का एक ताँबे का पात्र लेकर उसमें शक्कर भरकर तथा वस्त्र, फल, दक्षिणा सहित ब्राह्मण को देना चाहिये। शक्कर सहित ताँबे का पात्र सूर्य को प्रिय है। इससे मनुष्य के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं। उसके दान के प्रभाव से बलवान कीर्तिवान सन्तान उत्पन्न होती है। हे कुन्ती पर इस चातुर्मास्य व्रत को करने वाला मनुष्य गन्धर्व विद्या में निपुण और स्त्रियों को प्रिय होता है। जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में ब्राह्मणों को शाक-फल आदि देते हैं और अन्त में यथाशक्ति दानदक्षिणा, वस्त्र आदि देते हैं, वह सुखी राजयोगी बनते हैं। शाक और फल, देवता तथा मनियों को प्रिय हैं। अत: उसके देने से देवता प्रसन्न होते हैं।

 

जो मनुष्य इस व्रत में प्रतिदिन सोंठ, मिर्च, पीपल और दक्षिणा के साथ दान करते हैं और व्रत के अन्त में स्वर्ण तथा सोंठ, मिर्च आदि दान देते हैं, वे सौ वर्ष तक जीते हैं और अन्त में स्वर्ग को जाते हैं। जो तम्बाकू खाना छोड़ देते हैं, उनसे देवता प्रसन्न होते हैं और अनन्त धन देते हैं। इस व्रत में जो मनुष्य लक्ष्मी या पार्वती की प्रसन्नता के लिये हल्दी का दान करते हैं और अन्त में चादा के पात्र में हल्दी रखकर दान देते हैं, वे स्त्रिया। अपने पति के साथ और पति अपनी स्त्री के साथ। सुख भोगते हैं। इससे उन्हें सौभाग्य, अक्षय धन तथा सुपात्र सन्तान मिलती है और उनकी देवलोक में पूजा होती है। इस व्रत में जो मनुष्य शिवजी और पार्वती की पजा करते हैं तथा दक्षिणा, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान करते हैं और व्रत के शुरु में शिवलिंग की स्थापना करते हैं, गौ, बैल दान करते हैं और ब्राह्मणों को मीठा भोजन कराते हैं, उन्हें सम्पत्ति और कीर्ति मिलती है और इस लोक में सुख भोगकर अन्त में शिवलोक को जाते हैं। इस व्रत में वामन भगवान की प्रसन्नता के लिये ब्राह्मणों को दही से युक्त भात खिलाना चाहिये। यदि यह नित्य न हो सके तो अष्टमी, अमावस, पूर्णमासी और प्रत्येक रविवार या शुक्रवार को खिलाना चाहिये। ऐसा करने से इस लोक में धन-धान्य, पुत्र तथा विष्णु भक्ति मिलती है और | अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं।

 

मनुष्य दान तथा आभूषण से युक्त बछडा सहित गौ का दान करते हैं। वह इस लोक में ज्ञान और किसी के सेवक नहीं बनते और अन्त में ब्रह्मलोक में जाकर पितरों के साथ सुख प्राप्त करते हैं। चातुर्मास्य व्रत में जो मनुष्य प्रजापत्य का व्रत करते हैं और इसके समाप्त में गौ दान करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, वह समस्त पापों से छूटकर ब्रह्मलोक को जाते। इस व्रत में जो वस्त्र और बैलो क साथ आकर दान करते हैं और शाक, मूल फल आहार करते हैं तथा पयोव्रत करते हैं, अन्त में दध वाली दान देते हैं, वह विष्णुलोक को जाते हैं। जो मनुष्य दोनों ऋतुओं में केला के पत्र और पलाय के पत्तों पर भोजन करते हैं तथा कासे का पात्र और वस्त्र दान करते हैं, वे इस लोक में सुख पाते हैं। चातुर्मास्य व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण-घात करने वाला, सुरा पीने वाला, बालकों को मारने वाला, असत्य भाषण करने वाला; स्त्री को मारने वाला, किसी के व्रत को बिगाड़ने वाला, अगम्यागमन करने वाला, ब्राह्मणी तथा चाँडाली से गमन करने वाला, इन सबसे पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में निर्वाण पद को पाते हैं।

 

चातुर्मास्य व्रत के अन्त में जो मनुष्य ब्राह्मण | को आभूषण युक्त चन्दन सहित बैल का दान करते हैं तथा उसे षटरसयक्त भोजन करात हा उन्हें विष्णु लोक प्राप्त होता है। जो मनु भगवान् के शयन करने पर नित्य-प्रतिरा जागरण करते हैं तथा अन्त में बाह्मणा को भोजन कराते हैं, उन्हें शिवलोक की प्राप्ति होती है। चातुर्मास्य व्रत में जो मनुष्य नित्यप्रति एक समय खाकर ही रहते हैं तथा अन्त में भूखे को भोजन कराते हैं। उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक भगवान् की पूजा करते हैं, वह विष्णुलोक को जाते हैं। जो भगवान् के शयन करने के बाद भूमि पर सोते हैं तथा अन्त में शय्यादान करते हैं, उनकी शिवलोक में पूजा होती है। चातुर्मास्य व्रत में जो मनुष्य मैथुन नहीं करता, वह बलशाली, यशस्वी और लक्ष्मीवान् होता है तथा अन्त में स्वर्गलोक को जाता है। जो | मनुष्य इस व्रत में एक मात्र दूध पर ही निर्वाह करते हैं, उनका वंश प्रलय के अन्त तक चलता है। जिन दिन भगवान् शयन से उठते हैं, उस दिन ब्राह्मणों को दान, वस्त्र तथा भोजन देना चाहिये। यह समस्त दान वेदपाठी धार्मिक ब्राह्मण को देना चाहिये। चोरी करने वाला, मद्यपान करने वाला, अगम्या गमन करने वाला, मिथ्या बोलने वाला तथा अन्य त्याज्या करने वाले ब्राह्मणों को दान देने से उल्टा पाप लगता है तथा नर्क की प्राप्ति होती है।

 

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